जो आदत छोड़ी न जा सके उसे 'लत' कहते हैं।बुरी लत लग जाने पर उससे छुटकारा पाना कठिन हो जाता है।एक बार एक लड़के को गुड खाने की लत लग गयी।अधिकता हानिकारक होती है।ज्यादा गुड़ खाने से उसका स्वास्थ्य ख़राब होने लगा। इसपर किसी ने ध्यान नहीं दिया, जब हालात बेहद बिगडे और उसका चलना फिरना, उठाना-बैठना मुश्किल हो गया, तो उसके माता-पिता चिंतित हुए। डाक्टरी इलाज आरम्भ किया।डाक्टरों की तमाम कोशिशों के बाद भी उसकी सेहत में तनिक भी सुधार नहीं हुआ। डाक्टरों ने सलाह दी कि इसकी गुड खाने वाली आदत छुडवा दो अन्यथा इसका जीवन नष्ट हो जाएगा। परिवार वालों ने लत छुडवाने के अनेक उपाय किये, किन्तु सफल नहीं हुए । लड़के ने गुड खाना बंद नहीं किया । थक-हार कर उसको एक महात्मा जी के पास ले गए।सबने महात्मा जी को प्रणाम किया और अपनी समस्या बलाई। महात्मा जी ने उनकी बात ध्यान से सुनी। लड़के को ध्यान से देखा। उसकी पीठ थप-थपाई। कुछ देर मौन रहने के बाद वे बोले-" इस लड़के को घर ले जाओ। एक हप्ते बाद ले आना। " दुखित दम्पति ने बाबा जी को प्रणाम किया और उदास मन से लड़के को साथ लेकर अपने घर लौट आए ।
एक सप्ताह बाद वे पुनः बाबा जी के पास गए। उनको प्रणाम किया। लड़के के उपचार के लिए विनय-पूर्वक प्रार्थना की। महात्मा जी आसन पर विराजमान हुए और लड़के को अपने सामने बैठाया। उसकी आँखों में झाँकते हुए हुए बहुत ही विश्वास और शांत स्वर में कहा -"बच्चा ! गुड खाना बंद कर दो ।" इतना कहकर बाबाजी आसन से उठ गये। उनकी आज्ञा पाकर लड़का भी वहाँ से उठ गया और माँ -बाप के साथ घर चला आया।
लड़के ने गुड खाना छोड़ दिया। धीरे-धीरे उसकी सेहत में सुधार होने लगा । थोड़े ही दिनों में वह बिलकुल स्वस्थ हो गया। यह देखकर लोग आश्चर्यचकित हुए। जो काम तरह तरह की दवाइओं और युक्तियों से नहीं हो सका ,वह बाबाजी के दो -शब्दों से कैसे संपन्न हो गया? बाबा जी ने अपनी बात पहली बार जाने पर क्यों नहीं कही ? इतनी छोटी सी बात कहने के लिए बाबा जी ने एक हप्ते बाद क्यों बुलाया ? -लोगों के मन में कुतूहल बना रहा।
जिज्ञासावश लोग बाबजी के पास गए। दंडवत प्रणाम किया। हाथ जोड़कर बाबाजी से कहा -हे महात्मन ! आपकी महान कृपा से लड़के ने गुड खाना छोड़ दिया। वह अब पूर्णतयः स्वस्थ है । महाराज जी ! जो इलाज दुनिया भर की तमाम दवाइयों और कोशिशों के बावजूद संभव नहीं हो सका, आपके श्रीमुख से निकले दी-शब्दों ने उसे सहज ही कर दिया। बाबाजी ! हमारे मन में कुतूहल है - आपने पहली बार आने पर यह बात क्यों नहीं कही , एक हप्ते बाद क्यों बुलाया? "
बाबाजी हँसते हुए बोले -" प्यारे भक्तो !उस समय मै भी गुड खाने का आदी था। उस बुराई को त्यागे बिना मैं दृढ़ता से उपदेश नहीं दे सकता था। मेरी दी हुई शिक्षा बेअसर हो जाती , इस लिए मैंने पहले अपनी आदत सुधरी। धारी-धीरे सात दिन में गुड खाना बंद किया। तब उस लड़के को गुड न खाने का उपदेश दिया। "
ठीक ही कहा है -वाणी नहीं, आचरण एवं व्यक्तित्व ही प्रभावशाली उपदेश हैं।
niceee
जवाब देंहटाएंThanks sir
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