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शनिवार, 26 जुलाई 2014

न जाने किस रूप में नारायण मिल जाय

 परमपिता परमेश्वर सृष्टि के रचयिता हैं।  वे कण कण में विद्यमान हैं,  सर्वव्यापक और सर्वशक्तिमान हैं।  सृष्टि की प्रत्येक बस्तु, जीव , प्राणी, पदार्थ आदि परमात्मा के अंश से निर्मित है और उनके अधीन है। इन्हीं जीवों और वस्तुओं के माध्यम से परमपिता नारायण अपने भक्तों को जहाँ शुभ कार्यों के लिए प्रेरित करते है, वहीं तुच्छ कार्यों के प्रति आगाह भी करते हैं। ईश्वर ने मनुष्य को सही-गलत, उचित-अनुचित समझने की शक्ति दी है।  सच्छा ईश्वर भक्त प्रभु के सांकेतिक इशारों  को सहज ही समझ लेता है और उसके अनुसार सही मार्ग पर चलकर सुखी, संपन्न, शांत, संतुष्ट जीवन व्यतीत करता है। अंध-विश्वासी मूढ़ व्यक्ति प्रभु की आवाज का अर्थ समझने में असमर्थ होता है।  परिणामस्वरूप वह  अकर्मण्य बन बैठता है और अकारण ही दुःख के सागर में डूब जाता है।   

एक  समय की बात है।   नदी के किनारे एक छोटा सा गाँव,  गाँव के बाहर  एक  मंदिर । मंदिर के प्रांगण में एक  बाबा जी रहते थे जो   वहाँ  भजन कीर्तन और पूजा पाठ किया करते थे ।  उनका  गुजर-बसर   चढ़ावे  के रूप में प्राप्त   अन्न-धन  से चलता था ।

 एक बार  नदी में भयंकर  बाढ़ आ गई।  गाँव के  लोग  प्राण बचाने के लिए वहां से भागने लगेग्रामीणों ने   बाबा जी को भी वहां से चले  जाने का आग्रह किया।  किन्तु  बाबा जी  नहीं माने । ग्रामीणों को समझते हुए बाबा जी बोले -"मेरे शुभचिंतक बंधुओ! आप सब अपने प्राण बचाइये।  मेरी चिंता मत कीजिये।  इस मंदिर में भगवान विद्यमान है, निश्चित ही वे मेरे प्राण बचाएगें।इसलिए  मैने निश्चय किया है  कि यह मंदिर छोड़कर कहीं नहीं जाऊँगा। तब  उदास मन से गाॉव वाले बाबा जी के  बिना,  गाँव से दूर सुरक्षित जगहों पर चले गए।  

 नदी का  जल स्तर  पल  दर पल  बढ़ता    जा रहा था। स्थिति   भयावह  होती  देखकर गाँव का एक  मल्लाह    बाबा जी को बचाने के लिए   नाव लेकर आया।  उसने  विनीत  स्वर में  आग्रह किया  -' बाबा जी!   यहाँ  रहना खतरे  से  खाली   नहीं है। जल स्तर  तेजी से बढ़ रहा है। आप जल्दी इस  नाव  में  बैठ जाइये।   मैं  आपको सुरक्षित स्थान पर पहुँचाये  देता हूँ ।' किन्तु  बाबा जी नहीं माने।  उन्होंने   अन्यत्र  जाने से साफ़ इंकार कर दिया।

पानी तीव्र गति से मंदिर में घुसने  लगा। बाबा जी के डूब जाने का खतरा मंडराने लगा। तब बचाव दल के कुछ सैनिक बाबा जी को बचाने के लिए  हैलीकाप्टर  लेकर आये।  उसमें से   एक सीढीनुमा   रस्सी नीचे  लटकाई और   बाबा जी को समझाते हुए बोले -"  महात्मा जी !  इस रस्सी के सहारे ऊपर आकर  हैलीकाप्टर में बैठ जाइए अन्यथा  आपके प्राण नहीं बचेंगें।"

 "आप लोग ब्यर्थ परेशान हो रहे हैं , मैं कहीं नहीं जाउंगा, मेरी रक्षा के लिए भगवान स्वयं यहाँ आएंगे।"बाबाजी  ने सैनिको से कहा।

नदी उफान पर थी।   ऊँची ऊँची लहरें उठ  रही थी। भयानक भंवर घुमर रहे थे।   चारों तरफ जल ही जल दिखाई दे रहा था।  बाढ़ ने ऐसा विनाशकारी  रूप धारण किया कि  देखते ही देखते सारा गाँव पानी में डूब गया। बाबाजी भी पानी की  तेज धारा में बहने लगे। मृत्यु को सिर पर मंडराती देख कर बाबाजी डर गए।   उन्हें  प्राणों  का मोह सताने लगा।   जोर जोर से बचाओ बचाओ  चिल्लाते हुए  जल्दी जल्दी  अपने  हाथ पाँव पटकने लगे। किन्तु तब  तक बहुत देर  चुकी थी।  चिड़िया खेत चुग कर जा चुकी थी।  पानी का बहाव इतना  तेज था कि बचाव स्वरुप  बाबाजी के  सभी प्रयत्न बेकार साबित हुए। लहरों के बीच डूबते उतराते बाबा जी के प्राण पखेरू उड़ गए।

मरने के बाद जब बाबा जी को  स्वर्ग में बैठे भगवान के सामने लाया गया।   तब   उलाहना देते हुए उन्होंने भगवान से पूछा - "हे जग के पालनकर्ता ! हे भगवन!  मैं  जीवन  पर्यन्त आपकी भक्ति में लगा रहा। सदैव आपकी  पूजा करता रहा। किन्तु डूबते समय  आपने मुँह फेर लिया।   मुझे बचाने  नहीं आये । क्या यही है आपका  इंसाफ , आपकी   सेवाभक्ति और  पूजा पाठ   का फल ?"  
 बाबा जी के मुख से यैसी वाणी सुनकर  भगवान ने मुस्करा कर कहा- "महात्मा जी!   मै हर पल आपके साथ रहा। आपको पल पल सन्देश देता रहा कि वहाँ से भागकर किसी सुरक्षित स्थान पर चले जाओ।। तुम्हे क्या लगता है कि ग्रामीण लोग ,  नाविक  और हैलीकॉप्टर वाले  को  तुम्हारे पास स्वयं आये थे  ?  अलग अलग वेश में  रक्षक  के रूप में  उनको भेजकर मै   तुम्हें  बचाने  का प्रयत्न करता रहा ।  किन्तु  आप हर बार मेरी बात मानने से इंकार करते रहे । प्रिय भक्त !  बताइए इसमें मेरा क्या दोष है?

आपकी   भक्ति दिखावा थी, अन्यथा मानव मुखं से निकले मेरे सन्देश को मानकर सुरक्षित स्थान पर चले गए होते ।" 
      
भगवान  के श्रीमुख से  अमृतमयी मधुर वाणी सुनकर बाबा जी  को अपनी गलती का अहसास हुआ। वे समझ गए कि परमपिता परमेश्वर समस्त सृष्टि  के रचयिता है। वे  सर्व व्यापक हैकण कण में विद्यमान  हैं सृष्टि की  प्रत्येक  वस्तु, प्रत्येक जीव प्रत्येक प्राणी उनके  अंश से निर्मित  है और उनके अधीन है ।  इन्ही  वस्तुओ, और  जीवों के माध्यम से भगवान जहाँ  भक्तों को  शुभ कार्यों  के प्रति     प्रेरित करते  है  वहीँ तुच्छ कार्यों के प्रति   आगाह भी करते  हैं।  उनकी भाषा सांकेतिक होती है।   ईश्वर  ने मनुष्य को सही और  गलत को समझने की  शक्ति दी है।सच्चा  ईश्वर -भक्त समझदार होने के कारण,  प्रभु  के  सांकेतिक मार्गदर्शन  को आसानी से समझ लेता है और उसके अनुसार सही मार्ग पर  चलकर आनंदमयी जीवन का अधिकारी  बनता  है,  जबकि  अंध-विश्वासी ढोंगी  इंसान,   प्रभु की आवाज़  का अर्थ समझने में असमर्थ होता  है।  इस कारण वह  अकर्मण्य बन जाता है   और अकारण ही  दुःख के सागर में डूब मरता है।

प्रभु सचमुच  पल पल सन्देश भेजता  है। समझदार समझ लेता है, नासमझ डूब मरता है। 



                                                     जय श्री कृष्ण!!

वर्णयामि महापुण्यं सर्वपापहरं नृणां ।
यदोर्वन्शं नरः श्रुत्त्वा सर्वपापैः प्रमुच्यते।i
यत्र-अवतीर्णो भग्वान् परमात्मा नराकृतिः।
यदोसह्त्रोजित्क्रोष्टा नलो रिपुरिति श्रुताः।।
(श्रीमदभागवद्महापुराण)


अर्थ:

यदु वंश परम पवित्र वंश है. यह मनुष्य के समस्त पापों को नष्ट करने वाला है. इस वंश में स्वयम भगवान परब्रह्म ने मनुष्य के रूप में अवतार लिया था जिन्हें श्रीकृष्ण कहते है. जो मनुष्य यदुवंश का श्रवण करेगा वह समस्त पापों से मुक्त हो जाएगा.