फ़ॉलोअर

मंगलवार, 6 दिसंबर 2011

जीजाबाई

प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में माँ का स्थान बहुत ऊँचा होता है. जहां एक ओर माँ को ‘प्रथम गुरु’ कहा गया है, वहीं दूसरी ओर उसके ‘पाँव के नीचे स्वर्ग’ बताया गया है। इन कथनों में कहीं कोई अतिशयोक्ति नहीं है, क्योंकि प्रमाण के रूप में भारत के इतिहास में ऐसी एक नहीं बल्कि अनेक माताओं के नाम लिखे जा सकते हैं। यदुकुल में भी ऐसी अनेक माताएं हुई है जिनकी वीरता, साहस और त्याग से प्रेरित होकर उनकी संतानों ने बड़े ही अदभुद, महान और साहसिक कार्य किये और विश्व- इतिहास के पटल पर अपने गौरवगाथा की अमिट छाप छोड़ गए. ऐसा ही एक नाम, हिन्दू-स्वराज्य के निर्माता, शिवाजी की माता जीजाबाई का है. जीजाबाई का जन्म यादव-कुल में, सन् 1597 ई. में, सिंदखेड नामक एक गाँव में हुआ था. यह स्थान आजकल महाराष्ट्र के विदर्भ मंडल के अंतर्गत बुलढाणा जिले में आता है. उनके पिता का नाम लघुजी जाधव तथा माता का नाम महालासाबाई था. उनके पिता एक शक्तिशाली सामंत थे.

जीजाबाई का विवाह मालोजी के पुत्र शाहजी भोंसले से हुआ था. शाहजी भोंसले चतुर तथा नीति-कुशल व्यक्ति थे. पहले वे अहमदनगर के सुलतान की सेवा में थे, किन्तु बाद में, जब अहमदनगर पर शाहजहाँ ने अधिकार कर लिया, तब 1636 ई. में उन्होंने बीजापुर में नौकरी कर ली और अपनी नीति-कुशलता के द्वारा वहां पर यथेष्ट यश उपार्जित किया। उनको कर्नाटक में एक विशाल जागीर भी प्राप्त हुई. प्रारंभ में जीजाबाई के पिता लघुजी और श्वसुर मालोजी के परिवारों में घनिष्ठ मित्रता थी, किन्तु बाद में यह मित्रता कटुता में बदल गई.
जीजाबाई धर्मपरायण, पतिपरायण, त्याग और साहसी स्वभाव वाली स्त्री थीं. एक बार उनके पिता मुगलों की ओर से लड़ते हुए शाहजी का पीछा कर रहे थे. जीजाबाई उस समय गर्भवती थीं. शाहजी उनको शिवनेरी के दुर्ग में, एक मित्र के संरक्षण में, छोड़कर आगे बढ़ गए. शिवनेरी महाराष्ट्र राज्य के जुन्नर गाँव के पास स्थित एक प्राचीन किला है. इसको अहमदनगर के सुलतान ने जीजाबाई के श्वसुर को जागीर में दिया था. जाधवराव शाहजी का पीछा करते हुजब उस दुर्ग में पहुंचे पहुंचे, तो वहाँ शाहजी नहीं मिले किन्तु जीजाबाई मौजूद थीं. वह अपने पिता के समक्ष आई और बड़ी वीरता से कहा-" मेरे पति आपके शत्रु हैं इसलिए मैं भी आपकी दुश्मन हूँ. आपका दामाद तो यहाँ है नहीं, कन्या हाथ लगी है, उसे ही बंदी बना लो और जो उचित समझो सजा दो." लघुजी ने उनको अपने साथ मायके चलने को कहा, किन्तु जीजाबाई अपने पिता की इस बात पर पानी फेरते हुए उत्तर में कहा कि आर्य नारी का धर्म पति के आदेश का पालन करना है. शिवाजी के जन्म इसी शिवनेरी दुर्ग में हुआ था.

जीजाबाई एक तेजस्वी महिला थीं. जीवन भर पग-पग पर कठिनाइयों और विपरीत परिस्थितियों को झेलते हुए उन्होंने धैर्य नहीं खोया. उन्होंने शिवाजी को महान वीर योद्धा और स्वतन्त्र हिन्दू राष्ट्र का छत्रपति बनाने के लिए अपनी सारी शक्ति, योग्यता और बुद्धिमत्ता लगा दी. शिवाजी को बचपन से बहादुरों और शूर-वीरों की कहानिया सुनाया करती थीं. गीता और रामायण आदि की कथाये सुनकर उन्होंने शिवाजी के बाल-ह्रदय पर स्वाधीनता की लौ प्रज्वलित कर दी थी. उनके दिए हुए इन संस्कारों के कारण आगे चलकर वह बालक हिन्दू समाज का संरक्षक एवं गौरव बना. दक्षिण भारत में हिन्दू स्वराज्य की स्थापना की और स्वतन्त्र शासक की तरह अपने नाम का सिक्का चलवाया तथा 'छत्रपति शिवाजी महाराज' के नाम से ख्याति प्राप्त की.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें


वर्णयामि महापुण्यं सर्वपापहरं नृणां ।
यदोर्वन्शं नरः श्रुत्त्वा सर्वपापैः प्रमुच्यते।i
यत्र-अवतीर्णो भग्वान् परमात्मा नराकृतिः।
यदोसह्त्रोजित्क्रोष्टा नलो रिपुरिति श्रुताः।।
(श्रीमदभागवद्महापुराण)


अर्थ:

यदु वंश परम पवित्र वंश है. यह मनुष्य के समस्त पापों को नष्ट करने वाला है. इस वंश में स्वयम भगवान परब्रह्म ने मनुष्य के रूप में अवतार लिया था जिन्हें श्रीकृष्ण कहते है. जो मनुष्य यदुवंश का श्रवण करेगा वह समस्त पापों से मुक्त हो जाएगा.