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मंगलवार, 29 नवंबर 2011

गोपी-कृष्ण





 पांच सखियाँ   वन  में बैठी फूलों की माला गूंथ रही थीं   पाँचों ही मुरली मनोहर भगवान श्रीकृष्ण की अनन्य भक्त थीं  वे परस्पर  अपने  प्रिय प्रभू  श्रीकृष्ण की बाते  कर करके आनंदित हो  रही थीं । इतने मे उधर से एक साधु  जी आ निकले  साधु को रोक कर बालाओं ने कहा- " महात्मन ! हमारे प्राण प्रिय श्री कृष्ण वन में कही खो गए है   क्या आपने उन्हें काही  देखा है ?यदि देखा  है तो  हमे  भी बता दीजिये   " इसपर साधु ने कहा-"अरी पागलियो !  कृष्ण कही ऐसे मिलते है? उनको    पाने के लिए घोर  तपत्या  करनी पड़ती   है   वे राजेश्वर है    रुष्ट होते है तो दंड देते है और प्रसन्न होते है तो पुरस्कार  " सखियों ने कहा-" महात्मन ! आपके वे कृष्ण कोई और होंगे, हमारे कृष्ण राजेश्वर नहीं हैं, वे तो हमारे प्राणपति है    वे हमें क्या पुरस्कार  देंगे ? उनके कोष की कुंजी तो हमारे ही  पास रहती है     दंड तो वे कभी देते ही नहीं   यदि हम कभी कुपत्थय कर ले और वे कडवी दवा पिलाये तो  निश्चिति यह  दंड नहीं  प्रेम है.    साधु जी उनकी बात सुनकर मस्त हो गए. सभी गोपियाँ श्री कृष्ण को याद करके नाचने लगी  और   तन्मय हो   साधु भी  नाचने  लगा।  सारा वातावरण कृष्णमय हो गया   
!!जय हो मुरलीवाले की!!


वर्णयामि महापुण्यं सर्वपापहरं नृणां ।
यदोर्वन्शं नरः श्रुत्त्वा सर्वपापैः प्रमुच्यते।i
यत्र-अवतीर्णो भग्वान् परमात्मा नराकृतिः।
यदोसह्त्रोजित्क्रोष्टा नलो रिपुरिति श्रुताः।।
(श्रीमदभागवद्महापुराण)


अर्थ:

यदु वंश परम पवित्र वंश है. यह मनुष्य के समस्त पापों को नष्ट करने वाला है. इस वंश में स्वयम भगवान परब्रह्म ने मनुष्य के रूप में अवतार लिया था जिन्हें श्रीकृष्ण कहते है. जो मनुष्य यदुवंश का श्रवण करेगा वह समस्त पापों से मुक्त हो जाएगा.