गुलाम रहकर कोई भी जीना नहीं चाहता। आज़ादी की चाहत मनुष्यों को ही नहीं, पशु-पक्षी, पेड़-पौधे सभी को है। यह स्वाभाविक भाव ( natural sense) है।किसी ने सत्य ही कहा है- पराधीन सपनेहु सुख नाही।अर्थात पराधीन रहकर सपनों में भी सुख की उम्मीद करना व्यर्थ है ।पराधीनता मृत्यु से भी अधिक दुखदाई है।जगद्गुरु शंकराचार्य जी ने के अनुसार परवशता नरक का दूसरा नाम है , जहाँ प्राणियों को तरह तरह की यातनाएँ झेलनी पड़ती हैं। हमारा देश बहुत समय तक गुलाम रहा।लम्बे समय तक इस देश पर विदेशियों ने कब्ज़ा जमाये रखा।
बल, बुद्धि और पराक्रम में भारतवासी किसी से कम नहीं थे । फिर भी विदेशी हमलावरों से हार गए और लम्बे समय तक गुलाम रहे। कारण अनेक थे लेकिन मुख्य वजह थी यहाँ के तत्कालीन राजाओं का आपसी वैमनस्य । भारत के भिन्न भिन्न भागों पर अनेक छोटे छोटे राजाओं का अधिपत्य था।उनमें राष्ट्रीय भावना का अभाव था। सभी राजाओं के स्वार्थ अलग थे। सबके शौक और कामनाएँ अलग थीं। पारस्परिक ईर्ष्या द्वेष और कलह का बोलबाला था। एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए छोटे से प्रयोजन के लिए आपसी जंग आम बात थी। अपने शत्रु को स्वयं के बलबूते हराने में असमर्थ होने पर कई देशद्रोही भारतीय राजाओं ने युद्ध में बाहरी शासको की मदद ली। अपने ही देश के राजा को विदेशियों के हाथो पराजित करवाया।
ईसा पूर्व 327 में विदेशी हमलावर सिकंदर ने भारत में प्रवेश किया। उस समय चेनाब नदी से लगे हुए क्षेत्रो पर राजा पोरस का कब्ज़ा था और झेलम नदी के चारों ओर राजा अम्भि का। पुरू बहुत ही शक्तिशाली राजा था। उसकी सैन्य शक्ति बहुत सुदृढ़ थी। अम्भि का पुरू से पुराना वैर था। इसलिए सिकंदर के आगमन से वह बहुत खुश हुआ।पुरू को हराने के लिए उसने सिकंदर की मदद की। पुरू को हराकर सिकंदर ने पंजाब पर कब्ज़ा कर लिया ।
भारत पर 712 ई० में पहला मुस्लिम आक्रमण हुआ था। मोहम्मद बिन कासिम के नेतृत्व में अरबियों ने सिंध पर कब्ज़ा किया। उसके उपरांत सन 1000 ईo में सुल्तान महमूद 'गजनी' ने आक्रमण करके भारत के सीमान्त क्षेत्र के कुछ इलाको पर कब्ज़ा कर लिया। उसने अपना विजय अभियान जारी रखा और भारतीयों पर खूब जुर्म ढाये। 1175 ई. में मुहम्मद गोरी ने मुल्तान पर कब्ज़ा कर लिया। उसने पृथ्वीराज चौहान को पराजित किया और पकड़ कर उसका सिर कलम कर दिया। इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान के कट्टर शत्रु राजा जयचंद ने गजनी की मदद की। मुहम्मद गोरी ने भारत में मुस्लिम ताकत की स्थापना की।
भारत पर मुस्लिम आक्रमणों के कारण राजपूतो द्वारा स्थापित प्रशासनिक ढाँचा धीरे धीरे ध्वस्त होता गया। अंततः भारत के अधिकांश भूभाग पर विदेशी मुस्लिमो का कब्ज़ा हो गया।भारत में धन और बौद्धिक सम्पदा का बिपुल भंडार था । इसे सोने की चिड़िया कहा जाता था। विदेशी मुस्लिम हमलावरों ने यहाँ की धन संपत्ति को खूब लूटा। अनेक अत्याचार किये । हज़ारों लोगों को मौत के घाट उतारा। मंदिरों में तोड़ फोड़ की और बहुत से मंदिरों को तो नष्ट ही कर दिए।
सन 1498 ई० में पुर्तगाली नाविक वास्कोडिगामा द्वारा यूरोप और भारत के मध्य समुद्री मार्ग की खोज कर लेने के बाद, यूरोपीय शक्तियों का व्यापर के उद्देश्य से. भारत में प्रवेश आरम्भ हो गया। शुरुआत में डच, फ्रांसीसी और अंग्रेजों ने अपनी व्यापारिक कम्पनियाँ स्थापित की। बाद में अंग्रेजों ने डचों और फ्रांसीसियों को हराकर भारत के व्यापर पर अपना एकाधिकार स्थापित कर लिया। 1600 ई ० में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना के बाद पहले तो अग्रेजों ने भारत से व्यापर करना आरम्भ किया। बाद में साम्राज्य स्थापित करने की कोशिश करने लगे जिसमे वे सफल भी हुए।
1757 में प्लासी के युद्ध के बाद ब्रिटेन की ईस्ट इण्डिया कंपनी का राज्य आरम्भ हुआ। अगले सौ वर्षों में कंपनी ने धीरे धीरे छल बल से लगभग सम्पूर्ण भारत में अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया। फिरंगियों ने भारतीयों पर तरह तरह के जुल्म ढाये।अपनी कूटनीति से उन्होंने भारत के मुसलमान बादशाहों और हिन्दू राजाओं बुरी तरह कुचल दिया। देश का धन लूटने लगे। उत्पीड़न, अत्याचार और शोषण बहुत बढ़ गया। भारतीयों को कंपनी का शासन असह्य हो गया। लोग अंग्रेजों के चंगुल से छुटकारा पाने के लिए बेताब हो गए। आजादी के लिए विद्रोह की छुट-पुट घटनाएँ निरंतर होती रहीं। अंग्रेज बलपूर्वक उन घटनाओं को दबाते रहे । लोग जागरूक हो चुके थे। वे गुलामी से छुटकारा पाने के लिए चुपचाप तैयारी में लगे रहे। 1857 ई० के आरम्भ होने तक आजादी के दीवानों ने विद्रोह का पूरा वातावरण तैयार कर दिया था।
माँ भारती के वीर सपूत मंगल पण्डे की भुजाएं फड़क उठीं। उन्होंने 29 मार्च 1857 को बंगाल की बैरकपुर छावनी में अंग्रेज अफसरों को गोलियों से भून दिया। इस विद्रोह का दूरगामी परिणाम निश्चित था। बगावत के जुर्म में फिरंगियों ने मंगल पांडे को कैद कर लिया और 8 अप्रैल 1857 को उन्हें फ़ांसी के तख्ते पर लटका दिया। उनके इस बलिदान से निकली आग की लपटों ने ज्वालामुखी का रूप धारण कर लिया और देखते ही देखते वह आग समस्त भारत में फ़ैल गई। झाँसी,कानपुर, ग्वालियर,दिल्ली. मेरठ आदि कई जगहों पर उग्र विद्रोह आरंभ हो गये। झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई, नाना साहब पेशवा, तात्या टोपे , बेगम हजरत महल , मुग़ल सल्तनत के आखिरी बादशाह बहादुरशाह जफ़र, 80 वर्ष के महान क्रन्तिकारी वीर कुंवर सिंह आदि आजादी के मैदान-जंग में कूद पड़े। ऐसे में भला वीर यदुवंशी योद्धा राव तुलाराम कैसे चुप बैठ सकते थे। स्वतंत्रता के इस महासंग्राम में उन्होंने भी खूब बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया।
मेरठ में अंग्रेज शासकों का एक बड़ा सैनिक अड्डा था। बंगाल-सेना में फैले असंतोष और मंगल पांडे की फांसी वाली घटना से उत्पन्न आग की लपटें मेरठ तक पहुँच चुकी थी। परिणाम स्वरुप यहाँ के अधिकांश भारतीय सैनिकों ने भी चर्बी लगे कारतूसों को चलाने से मना कर दिया। 9 मई 1857 को इस जुल्म के लिए 85 भारतीय सिपाहियों को कठोर कारावास का दण्ड सुनाया गया। उनकी वर्दी उतरवा ली गई और बेड़ियों में बाँध कर सेना के समक्ष परेड कराई गई। तत्पश्चात उन्हें जेल में बंद कर दिया गया। अंग्रेजों के इस क्रूर कदम से मेरठ शहर और छावनी में हर जगह अशांति फ़ैल गई। परिणाम स्वरुप मेरठ छावनी के भारतीय सिपाहियों ने अंग्रेजी शासन के प्रति खुला विद्रोह कर दिया। विद्रोह इतना जोरदार था कि देखते ही देखते बहुत से ब्रिटिश नागरिक, सैनिक और असैनिक अग्रेज अफसर मौत के घाट उतार दिये गए। बगावती सैनिकों ने जेल के फाटक तोड़ दिए और बंदी बनाये गए 85 साथी सिपाहियों के अतिरिक्त जेल में बंद 800 अन्य कैदियों को भी छुड़ा लिया। बड़ी मुस्तैदी से सामना करते हुए विद्रोहियों ने फिरंगी सेना को बुरी तरह पराजित कर दिया। बगावती सेना जीत का परचम लहराते हुए दिल्ली की ओर कूच कर गयी। 11 मई को क्रांतिकारी सैनिक दिल्ली पहुंचे। 12 मई को दिल्ली पर अधिकार कर लिया और मुग़ल सम्राट बहादुर शाह को दिल्ली का सम्राट घोषित कर दिया। किन्तु दुर्भाग्यवश स्वतंत्रता का यह (प्रथम) संग्राम विफल हो गया। अंग्रेजों ने बहादुरशाह को बंदी बनाकर रंगून भेज दिया, जहाँ पर उनकी मृत्यु हो गई।
यद्यपि स्वतंत्रता के इस संग्राम में भारत माँ के वीर सपूतों को सफलता नहीं मिली , तथापि वे भारतीयों के ह्रदय में राष्ट्रीय चेतना और राष्ट्रीय प्रेम की भावना जाग्रत करने में सफल रहे, जिससे बहुत बड़े राष्ट्रीय आंदोलन का उदय हुआ। 1885 ई० में अखिल भारतीय कांग्रेस की स्थापना हुई, जिसने आजादी के लिए राष्ट्रीय आंदोलन चलाया। प्रारम्भ में ब्रिटिश हुकूमत के प्रति कांग्रेस ने उदार रवैया अपनाया। वे अपनी मांगें वैधानिक तरीके से मनवाना चाहते थे। परन्तु बाद में इसके प्रयासों से आंदोलन इतना सशक्त हो गया कि अंग्रेजों को अपनी हार माननी पड़ी और भारतीयों को अपने उद्देश्य में सफलता मिली। इस आंदोलन में उदारवादी और उग्रवादी दोनों विचारधारा वाले व्यक्ति शामिल थे। पं० मदन मोहन मालवीय ,गोपालकृष्ण गोखले, दादाभाई नौरोजी, महात्मा गांधी , पं० जवाहरलाल नेहरू ,लोकमान्य तिलक, लाला लाजपत राय, सुचेता कृपलानी , उषा मेहता , विनोवा भावे , क्रन्तिकारी नेता चन्द्रशेखर आज़ाद, वीर विनायक दामोदर, मदनलाल ढींगरा, सुभाषचन्द्र बोस, ऊधम सिंह, भगतसिंह , राजगुरु , सुखदेव, गणेश शंकर विद्यार्थी, करतारसिंह सराभा, अशफ़ाक उल्ला खान, विपिनचन्द्र पाल आदि अनेक नेताओं ने अपना बहुमूल्य योगदान दिया।इस महान कार्य में भारत की अनेक धार्मिक और सामाजिक संस्थाओं ने भी बहुत ही महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। सालों -साल आंदोलन चला।जलियांवाला बाग की जैसी कत्लेआम की घटनाएँ हुईं। असंख्य लोगों की जानें गईं। बहुतों को फाँसी के तख्ते पर लटका दिया गया। लाखो लोगों ने आज़ादी के लिए अपने प्राण निछावर कर दिया। अंततः अंग्रेजों को हार स्वीकार करनी ही पड़ी।
इतने साहसपूर्ण संघर्ष, बलिदानों और लम्बी लड़ाई के बाद 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ। अंग्रेज भारत छोड़कर चले गए। देशवासियों में खुशियों की लहर दौड़ गई। देश की बागडोर देशवासियों ने संभाली। पं० जवाहरलाल नेहरू आजाद देश के पहले प्रधनमंत्री बने। 15 अगस्त को लाल किले पर यूनियन जैक के झंडे को उतारकर भारतीय राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा लहराया गया। उस समय से 15 अगस्त के दिन हम अपना स्वतंत्रता दिवस मनाते आ रहे हैं। स्वतंत्रता दिवस भारत का राष्ट्रीय पर्व है। यह हमारे गौरव का दिन है।
आज 15 अगस्त 2014 को हम स्वतंत्रता दिवस की 67वीं वर्षगाँठ मना रहे है। देश को आज़ाद हुए 67 साल बीत चुके हैं। इतने वर्ष बीत जाने के बाद, समाज के एक वर्ग को आजादी का एहसास होना अभी बाकी है। भारत के छोटे मंझोले किसान, मजदूर वर्ग आदि के अधिकांश व्यक्तियों को कठिन परिश्रम करने के बावजूद दो जून की रोटी मुश्किल से नसीब होती है। न पीने को पानी और ना ही रहने के लिए घर। झुग्गी-झोपड़ी की गन्दी बस्तियों किसी तरह जीवन व्यतीत करते हैं। ये झुग्गी-झोपड़ियाँ भी यदाकदा नगर निगम, पंचायत आदि के कोपभाजन का शिकार हो जाती है। अवैध कह कर नष्ट कर दी जाती है। आज़ाद भारत में, भारत माँ के सपूत की दस वर्ग-फुट में घास-फूस से बनी झोपड़ी को 'अवैध' कहकर अचानक गिरा दी जाती है, असहाय गरीब परिवार छोटे-छोटे मासूम बच्चों के साथ खुले आसमान में सड़क पर रात गुजारने को बेबस हो जाता हैं। फिर चाहे वह प्रचंड गर्मी के दिन हो, बरसात हो या फिर बर्फ जमा देने वाली कड़ाके की ठण्ड, आकाश तले गुजर-बसर आदत बन जाती है। उनके लिए स्वतंत्रता दिवस का सारा ताम-झाम, उत्सव कोई माने नहीं रखते।
उम्मीद पर दुनिया कायम है। इनके भी अच्छे दिन अवश्य आयेंगें, ऐसा है विश्वास।
!!!! मन में है विश्वास!!!!!!
स्वतंत्रता दिवस के पवित्र अवसर पर सभी देशवासियों को हार्दिक बधाई।
जय हो! जय भारत!
बल, बुद्धि और पराक्रम में भारतवासी किसी से कम नहीं थे । फिर भी विदेशी हमलावरों से हार गए और लम्बे समय तक गुलाम रहे। कारण अनेक थे लेकिन मुख्य वजह थी यहाँ के तत्कालीन राजाओं का आपसी वैमनस्य । भारत के भिन्न भिन्न भागों पर अनेक छोटे छोटे राजाओं का अधिपत्य था।उनमें राष्ट्रीय भावना का अभाव था। सभी राजाओं के स्वार्थ अलग थे। सबके शौक और कामनाएँ अलग थीं। पारस्परिक ईर्ष्या द्वेष और कलह का बोलबाला था। एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए छोटे से प्रयोजन के लिए आपसी जंग आम बात थी। अपने शत्रु को स्वयं के बलबूते हराने में असमर्थ होने पर कई देशद्रोही भारतीय राजाओं ने युद्ध में बाहरी शासको की मदद ली। अपने ही देश के राजा को विदेशियों के हाथो पराजित करवाया।
ईसा पूर्व 327 में विदेशी हमलावर सिकंदर ने भारत में प्रवेश किया। उस समय चेनाब नदी से लगे हुए क्षेत्रो पर राजा पोरस का कब्ज़ा था और झेलम नदी के चारों ओर राजा अम्भि का। पुरू बहुत ही शक्तिशाली राजा था। उसकी सैन्य शक्ति बहुत सुदृढ़ थी। अम्भि का पुरू से पुराना वैर था। इसलिए सिकंदर के आगमन से वह बहुत खुश हुआ।पुरू को हराने के लिए उसने सिकंदर की मदद की। पुरू को हराकर सिकंदर ने पंजाब पर कब्ज़ा कर लिया ।
भारत पर 712 ई० में पहला मुस्लिम आक्रमण हुआ था। मोहम्मद बिन कासिम के नेतृत्व में अरबियों ने सिंध पर कब्ज़ा किया। उसके उपरांत सन 1000 ईo में सुल्तान महमूद 'गजनी' ने आक्रमण करके भारत के सीमान्त क्षेत्र के कुछ इलाको पर कब्ज़ा कर लिया। उसने अपना विजय अभियान जारी रखा और भारतीयों पर खूब जुर्म ढाये। 1175 ई. में मुहम्मद गोरी ने मुल्तान पर कब्ज़ा कर लिया। उसने पृथ्वीराज चौहान को पराजित किया और पकड़ कर उसका सिर कलम कर दिया। इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान के कट्टर शत्रु राजा जयचंद ने गजनी की मदद की। मुहम्मद गोरी ने भारत में मुस्लिम ताकत की स्थापना की।
भारत पर मुस्लिम आक्रमणों के कारण राजपूतो द्वारा स्थापित प्रशासनिक ढाँचा धीरे धीरे ध्वस्त होता गया। अंततः भारत के अधिकांश भूभाग पर विदेशी मुस्लिमो का कब्ज़ा हो गया।भारत में धन और बौद्धिक सम्पदा का बिपुल भंडार था । इसे सोने की चिड़िया कहा जाता था। विदेशी मुस्लिम हमलावरों ने यहाँ की धन संपत्ति को खूब लूटा। अनेक अत्याचार किये । हज़ारों लोगों को मौत के घाट उतारा। मंदिरों में तोड़ फोड़ की और बहुत से मंदिरों को तो नष्ट ही कर दिए।
सन 1498 ई० में पुर्तगाली नाविक वास्कोडिगामा द्वारा यूरोप और भारत के मध्य समुद्री मार्ग की खोज कर लेने के बाद, यूरोपीय शक्तियों का व्यापर के उद्देश्य से. भारत में प्रवेश आरम्भ हो गया। शुरुआत में डच, फ्रांसीसी और अंग्रेजों ने अपनी व्यापारिक कम्पनियाँ स्थापित की। बाद में अंग्रेजों ने डचों और फ्रांसीसियों को हराकर भारत के व्यापर पर अपना एकाधिकार स्थापित कर लिया। 1600 ई ० में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना के बाद पहले तो अग्रेजों ने भारत से व्यापर करना आरम्भ किया। बाद में साम्राज्य स्थापित करने की कोशिश करने लगे जिसमे वे सफल भी हुए।
1757 में प्लासी के युद्ध के बाद ब्रिटेन की ईस्ट इण्डिया कंपनी का राज्य आरम्भ हुआ। अगले सौ वर्षों में कंपनी ने धीरे धीरे छल बल से लगभग सम्पूर्ण भारत में अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया। फिरंगियों ने भारतीयों पर तरह तरह के जुल्म ढाये।अपनी कूटनीति से उन्होंने भारत के मुसलमान बादशाहों और हिन्दू राजाओं बुरी तरह कुचल दिया। देश का धन लूटने लगे। उत्पीड़न, अत्याचार और शोषण बहुत बढ़ गया। भारतीयों को कंपनी का शासन असह्य हो गया। लोग अंग्रेजों के चंगुल से छुटकारा पाने के लिए बेताब हो गए। आजादी के लिए विद्रोह की छुट-पुट घटनाएँ निरंतर होती रहीं। अंग्रेज बलपूर्वक उन घटनाओं को दबाते रहे । लोग जागरूक हो चुके थे। वे गुलामी से छुटकारा पाने के लिए चुपचाप तैयारी में लगे रहे। 1857 ई० के आरम्भ होने तक आजादी के दीवानों ने विद्रोह का पूरा वातावरण तैयार कर दिया था।
माँ भारती के वीर सपूत मंगल पण्डे की भुजाएं फड़क उठीं। उन्होंने 29 मार्च 1857 को बंगाल की बैरकपुर छावनी में अंग्रेज अफसरों को गोलियों से भून दिया। इस विद्रोह का दूरगामी परिणाम निश्चित था। बगावत के जुर्म में फिरंगियों ने मंगल पांडे को कैद कर लिया और 8 अप्रैल 1857 को उन्हें फ़ांसी के तख्ते पर लटका दिया। उनके इस बलिदान से निकली आग की लपटों ने ज्वालामुखी का रूप धारण कर लिया और देखते ही देखते वह आग समस्त भारत में फ़ैल गई। झाँसी,कानपुर, ग्वालियर,दिल्ली. मेरठ आदि कई जगहों पर उग्र विद्रोह आरंभ हो गये। झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई, नाना साहब पेशवा, तात्या टोपे , बेगम हजरत महल , मुग़ल सल्तनत के आखिरी बादशाह बहादुरशाह जफ़र, 80 वर्ष के महान क्रन्तिकारी वीर कुंवर सिंह आदि आजादी के मैदान-जंग में कूद पड़े। ऐसे में भला वीर यदुवंशी योद्धा राव तुलाराम कैसे चुप बैठ सकते थे। स्वतंत्रता के इस महासंग्राम में उन्होंने भी खूब बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया।
मेरठ में अंग्रेज शासकों का एक बड़ा सैनिक अड्डा था। बंगाल-सेना में फैले असंतोष और मंगल पांडे की फांसी वाली घटना से उत्पन्न आग की लपटें मेरठ तक पहुँच चुकी थी। परिणाम स्वरुप यहाँ के अधिकांश भारतीय सैनिकों ने भी चर्बी लगे कारतूसों को चलाने से मना कर दिया। 9 मई 1857 को इस जुल्म के लिए 85 भारतीय सिपाहियों को कठोर कारावास का दण्ड सुनाया गया। उनकी वर्दी उतरवा ली गई और बेड़ियों में बाँध कर सेना के समक्ष परेड कराई गई। तत्पश्चात उन्हें जेल में बंद कर दिया गया। अंग्रेजों के इस क्रूर कदम से मेरठ शहर और छावनी में हर जगह अशांति फ़ैल गई। परिणाम स्वरुप मेरठ छावनी के भारतीय सिपाहियों ने अंग्रेजी शासन के प्रति खुला विद्रोह कर दिया। विद्रोह इतना जोरदार था कि देखते ही देखते बहुत से ब्रिटिश नागरिक, सैनिक और असैनिक अग्रेज अफसर मौत के घाट उतार दिये गए। बगावती सैनिकों ने जेल के फाटक तोड़ दिए और बंदी बनाये गए 85 साथी सिपाहियों के अतिरिक्त जेल में बंद 800 अन्य कैदियों को भी छुड़ा लिया। बड़ी मुस्तैदी से सामना करते हुए विद्रोहियों ने फिरंगी सेना को बुरी तरह पराजित कर दिया। बगावती सेना जीत का परचम लहराते हुए दिल्ली की ओर कूच कर गयी। 11 मई को क्रांतिकारी सैनिक दिल्ली पहुंचे। 12 मई को दिल्ली पर अधिकार कर लिया और मुग़ल सम्राट बहादुर शाह को दिल्ली का सम्राट घोषित कर दिया। किन्तु दुर्भाग्यवश स्वतंत्रता का यह (प्रथम) संग्राम विफल हो गया। अंग्रेजों ने बहादुरशाह को बंदी बनाकर रंगून भेज दिया, जहाँ पर उनकी मृत्यु हो गई।
यद्यपि स्वतंत्रता के इस संग्राम में भारत माँ के वीर सपूतों को सफलता नहीं मिली , तथापि वे भारतीयों के ह्रदय में राष्ट्रीय चेतना और राष्ट्रीय प्रेम की भावना जाग्रत करने में सफल रहे, जिससे बहुत बड़े राष्ट्रीय आंदोलन का उदय हुआ। 1885 ई० में अखिल भारतीय कांग्रेस की स्थापना हुई, जिसने आजादी के लिए राष्ट्रीय आंदोलन चलाया। प्रारम्भ में ब्रिटिश हुकूमत के प्रति कांग्रेस ने उदार रवैया अपनाया। वे अपनी मांगें वैधानिक तरीके से मनवाना चाहते थे। परन्तु बाद में इसके प्रयासों से आंदोलन इतना सशक्त हो गया कि अंग्रेजों को अपनी हार माननी पड़ी और भारतीयों को अपने उद्देश्य में सफलता मिली। इस आंदोलन में उदारवादी और उग्रवादी दोनों विचारधारा वाले व्यक्ति शामिल थे। पं० मदन मोहन मालवीय ,गोपालकृष्ण गोखले, दादाभाई नौरोजी, महात्मा गांधी , पं० जवाहरलाल नेहरू ,लोकमान्य तिलक, लाला लाजपत राय, सुचेता कृपलानी , उषा मेहता , विनोवा भावे , क्रन्तिकारी नेता चन्द्रशेखर आज़ाद, वीर विनायक दामोदर, मदनलाल ढींगरा, सुभाषचन्द्र बोस, ऊधम सिंह, भगतसिंह , राजगुरु , सुखदेव, गणेश शंकर विद्यार्थी, करतारसिंह सराभा, अशफ़ाक उल्ला खान, विपिनचन्द्र पाल आदि अनेक नेताओं ने अपना बहुमूल्य योगदान दिया।इस महान कार्य में भारत की अनेक धार्मिक और सामाजिक संस्थाओं ने भी बहुत ही महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। सालों -साल आंदोलन चला।जलियांवाला बाग की जैसी कत्लेआम की घटनाएँ हुईं। असंख्य लोगों की जानें गईं। बहुतों को फाँसी के तख्ते पर लटका दिया गया। लाखो लोगों ने आज़ादी के लिए अपने प्राण निछावर कर दिया। अंततः अंग्रेजों को हार स्वीकार करनी ही पड़ी।
इतने साहसपूर्ण संघर्ष, बलिदानों और लम्बी लड़ाई के बाद 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ। अंग्रेज भारत छोड़कर चले गए। देशवासियों में खुशियों की लहर दौड़ गई। देश की बागडोर देशवासियों ने संभाली। पं० जवाहरलाल नेहरू आजाद देश के पहले प्रधनमंत्री बने। 15 अगस्त को लाल किले पर यूनियन जैक के झंडे को उतारकर भारतीय राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा लहराया गया। उस समय से 15 अगस्त के दिन हम अपना स्वतंत्रता दिवस मनाते आ रहे हैं। स्वतंत्रता दिवस भारत का राष्ट्रीय पर्व है। यह हमारे गौरव का दिन है।
आज 15 अगस्त 2014 को हम स्वतंत्रता दिवस की 67वीं वर्षगाँठ मना रहे है। देश को आज़ाद हुए 67 साल बीत चुके हैं। इतने वर्ष बीत जाने के बाद, समाज के एक वर्ग को आजादी का एहसास होना अभी बाकी है। भारत के छोटे मंझोले किसान, मजदूर वर्ग आदि के अधिकांश व्यक्तियों को कठिन परिश्रम करने के बावजूद दो जून की रोटी मुश्किल से नसीब होती है। न पीने को पानी और ना ही रहने के लिए घर। झुग्गी-झोपड़ी की गन्दी बस्तियों किसी तरह जीवन व्यतीत करते हैं। ये झुग्गी-झोपड़ियाँ भी यदाकदा नगर निगम, पंचायत आदि के कोपभाजन का शिकार हो जाती है। अवैध कह कर नष्ट कर दी जाती है। आज़ाद भारत में, भारत माँ के सपूत की दस वर्ग-फुट में घास-फूस से बनी झोपड़ी को 'अवैध' कहकर अचानक गिरा दी जाती है, असहाय गरीब परिवार छोटे-छोटे मासूम बच्चों के साथ खुले आसमान में सड़क पर रात गुजारने को बेबस हो जाता हैं। फिर चाहे वह प्रचंड गर्मी के दिन हो, बरसात हो या फिर बर्फ जमा देने वाली कड़ाके की ठण्ड, आकाश तले गुजर-बसर आदत बन जाती है। उनके लिए स्वतंत्रता दिवस का सारा ताम-झाम, उत्सव कोई माने नहीं रखते।
उम्मीद पर दुनिया कायम है। इनके भी अच्छे दिन अवश्य आयेंगें, ऐसा है विश्वास।
!!!! मन में है विश्वास!!!!!!
स्वतंत्रता दिवस के पवित्र अवसर पर सभी देशवासियों को हार्दिक बधाई।
जय हो! जय भारत!
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