वैशाली का नामकरण महाभारत काल के इक्षवाकु वंश
के एक राजा के नाम पर हुआ था। ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार वैशाली ने ही
विश्व का सबसे पहला गणतंत्र कायम किया। यह स्थान जैन धर्म के 24वे तीर्थकर
भगवान महावीर की जन्म स्थली भी है। इस कारण जैन धर्म के मतावलम्बियों के
लिए वैशाली एक पवित्र स्थान है। इस पवित्र धरती पर भगवन बुद्ध का तीन बार
आगमन हुआ था। भगवन बुद्ध के समय इसके सोलह महाजनपद थे और मगध के समान ही यह स्थान भी बहुत महत्वपूर्ण था। आधुनिक समय में यह स्थान बिहार प्रान्त के तिरहुत मंडल का एक जिला है। इसका मुख्यालय हाजीपुर है।
श्रीमदभगवत पुराण के अनुसार यदु के सहस्त्रजित, क्रोष्टा, नल और रिपु नामक चार थे। यदु के दूसरे पुत्र क्रोष्टा के कुल में कई पीढ़ियों के बाद भगवान श्रीकृष्ण का अवतार हुआ था। वही यदु के ज्येष्ठ पुत्र सहस्त्रजित के एक पौत्र का नाम था हैहय । उसके वंशज हैहयवंशी यादव क्षत्रिय कहलाये। इसी हैहय वंश में आगे
चलकर तालजंघ नमक एक प्रतापी राजा हुआ। एक बार तालजंघ-वंश के यादव क्षत्रियों ने इक्ष्वाकुवंशीय राजा सगर के पिता बाहु को युद्ध में परास्त कर दिया तब वह भागकर वन में चला गया और सगर के पैदा होने से पूर्व ही स्वर्ग गमन कर गया था।
सगर के पिता बाहु को पराजित करके हैहय वंशियों ने वैशाली में अपने पराक्रम से आठ गणराज्यो वाले एक शक्तिशाली राज्य की स्थापना की, जिसे 'वज्जि' संघ कहा जाता था। पाणिनि ने इसको 'वृज्जि' संघ का नाम दिया है। इस गण की राजधानी वैशाली थी। कई इतिहासकार विदेहों और लिच्छवि (लिच्छवियों) के संगठन को वृजिगण मानते हैं,।किन्तु कौटिल्य अर्थशास्त्र 'लिच्छवि' गण को वृज्जि से अलग मानता है। लिच्छवि-वृज्जि गण जहाँ एक ओर लम्बे समय तक अपनी स्वतंत्रता कायम रखने में कामयाब रहे वहीं भारत के इतिहास में एक वीर एवं शक्तिशाली गण के रूप में अपनी अमिट छाप भी बनाये रखी।
जय श्रीकृष्ण!