महीनों से घर आँगन की मरम्मत, सफेदी, रंग-रोगन साफ-सफाई करते करते थक चुके हैं। जिस पर्व को अलंकृत करने के लिए इतने दिनों से तैयारी में जुटे थे, वह दिन आ ही गया। मन खुशियों से भर गया - आज दीप-मालाओं का त्यौहार दिवाली जो है। दिवाली का दूसरा नाम प्रकाश पर्व है। प्रकाश- जिसके अभाव में जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। प्रकाश-जो मानव जीवन में प्रसन्नता का सूचक है- चाहे वह आंतरिक प्रसन्नता हो या फिर बाह्य प्रसन्नता। ऊर्जा - जिसके बिना जीवन गलिशील नहीं हो सकता, उसका एक मात्र श्रोत प्रकाश ही है।
कार्तिक मास की अमावस्या को दीपावली का पर्व बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है. इसे दीप-मालाओं का त्यौहार , रोशनी का त्यौहार अथवा प्रकाश-पर्व भी कहा जाता है. ब्रह्मपुराण के अनुसार कार्तिक अमावस्या को अर्धरात्रि के समय माँ लक्ष्मी सद-गृहस्थों के मकानों में यत्र-तत्र विचरण कारती हैं. इसलिए इसदिन घर-बाहर को खूब साफ़ करके सजाया-संवारा जाता है. लक्ष्मी-गणेश जी के साथ सरस्वती मैया की पूजा की जाती है. कहा जाता है कि कार्तिक अमावश्या को भगवान श्रीरामचन्द्रजी चौदह वर्ष का वनवास काट कर तथा आसुरी वृत्तियों के प्रतीक रावण आदि को मारकर अयोध्या लौटे थे. इस खुशी में अयोध्या-वासियो ने दीपमालाएँ जलाकर महोत्सव मनाया था. इस दिन उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य का राजतिलक भी हुआ था. विक्रमी संवत का आरंभ तभी से माना जाता है. अतः यह नव-वर्ष का प्रथम दिन भी है. दीपावली के दिन दीप जलाने की प्रथा के पीछे एक मान्यता यह भी है कि कार्तिक अमावस्या से पितरों की रात आरम्भ होती है. कहीं वे पथ-भ्रष्ट न हो जाएँ इसलिए प्रकाश का विधान किया जाता है. इस प्रथा का बंगाल में विशेष महत्त्व है.
दीपावली प्रकाश-पर्व है. पहले मिट्टी से बने दीवों में घी अथवा सरसों का तेल भरकर दीप जलाकर रोशनी की जाती थी. लेकिन समय परिवर्तन के साथ आधुनिकता के इस युग में रंग-विरंगी विद्युत्-लड़ियों का चलन अधिक हो गया है. रात्रि में मंदिरों, गुरुद्वारों, दुकानों,मकानों, चौपालों, चौबारों आदि सभी स्थानों पर जगमगाती तरह-तरह की विद्युत् लड़ियाँ बहुत ही शोभायमान होती है.
दीपावली जैसे शुभ अवसर पर जुआ खेलने की कुप्रथा भी है. द्युत-क्रीडा एक दुर्गुण है. पिछले कई वर्षों से एक और कुप्रथा ने तेजी से अपने पाँव पसार लिए हैं जिसके फलस्वरूप प्रदूषण फैलाने वाले पटाखों ,आतिशबाजियों आदि का चलन बहुत बढ गया है. ये पटाखे पर्यावरण को प्रदुषित करके ग्लोबलवार्मिक को बढ़ाते हैं| इससे सुख-समृद्धि की कामना से मनाया जाने वाला दीपावली जैसे पवित्र पर्व का उद्देश्य ही अर्थहीन हो गया है. स्वस्थ एवं सुख-समृद्ध वाला जीवन केवल प्रदूषण-रहित वातावरण में ही संभव है. इसलिए हम सबका यह कर्तव्य है कि मानव-हित में पटाखों जैसे प्रदूषण फ़ैलाने वाली वस्तुओं के उपयोग से दूर रहें.
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